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{ | |
"title": "१. पठमवग्गो", | |
"book_name": "४. चतुक्कनिपातो", | |
"chapter": "१. लोभसुत्तं", | |
"gathas": [ | |
"‘‘येन", | |
"तं लोभं सम्मदञ्ञाय, पजहन्ति विपस्सिनो।", | |
"पहाय न पुनायन्ति, इमं लोकं कुदाचन’’न्ति॥", | |
"‘‘येन", | |
"तं दोसं सम्मदञ्ञाय, पजहन्ति विपस्सिनो।", | |
"पहाय न पुनायन्ति, इमं लोकं कुदाचन’’न्ति॥", | |
"‘‘येन मोहेन मूळ्हासे, सत्ता गच्छन्ति दुग्गतिं।", | |
"तं मोहं सम्मदञ्ञाय, पजहन्ति विपस्सिनो।", | |
"पहाय न पुनायन्ति, इमं लोकं कुदाचन’’न्ति॥", | |
"‘‘येन", | |
"तं कोधं सम्मदञ्ञाय, पजहन्ति विपस्सिनो।", | |
"पहाय न पुनायन्ति, इमं लोकं कुदाचन’’न्ति॥", | |
"‘‘येन मक्खेन मक्खासे", | |
"तं मक्खं सम्मदञ्ञाय, पजहन्ति विपस्सिनो।", | |
"पहाय न पुनायन्ति, इमं लोकं कुदाचन’’न्ति॥", | |
"‘‘येन मानेन मत्तासे, सत्ता गच्छन्ति दुग्गतिं।", | |
"तं मानं सम्मदञ्ञाय, पजहन्ति विपस्सिनो।", | |
"पहाय न पुनायन्ति, इमं लोकं कुदाचन’’न्ति॥", | |
"‘‘यो", | |
"स वे सब्बपरिञ्ञा", | |
"‘‘मानुपेता अयं पजा, मानगन्था भवे रता।", | |
"मानं अपरिजानन्ता, आगन्तारो पुनब्भवं॥", | |
"‘‘ये", | |
"ते मानगन्थाभिभुनो, सब्बदुक्खमुपच्चगु’’न्ति", | |
"‘‘येन लोभेन लुद्धासे, सत्ता गच्छन्ति दुग्गतिं।", | |
"तं लोभं सम्मदञ्ञाय, पजहन्ति विपस्सिनो।", | |
"पहाय न पुनायन्ति, इमं लोकं कुदाचन’’न्ति॥", | |
"‘‘येन", | |
"तं दोसं सम्मदञ्ञाय, पजहन्ति विपस्सिनो।", | |
"पहाय न पुनायन्ति, इमं लोकं कुदाचन’’न्ति॥", | |
"रागदोसा अथ मोहो, कोधमक्खा", | |
"मानतो रागदोसा पुन द्वे, पकासिता वग्गमाहु पठमन्ति॥", | |
"‘‘येन मोहेन मूळ्हासे, सत्ता गच्छन्ति दुग्गतिं।", | |
"तं मोहं सम्मदञ्ञाय, पजहन्ति विपस्सिनो।", | |
"पहाय", | |
"‘‘येन", | |
"तं कोधं सम्मदञ्ञाय, पजहन्ति विपस्सिनो।", | |
"पहाय न पुनायन्ति, इमं लोकं कुदाचन’’न्ति॥", | |
"‘‘येन मक्खेन मक्खासे, सत्ता गच्छन्ति दुग्गतिं।", | |
"तं मक्खं सम्मदञ्ञाय, पजहन्ति विपस्सिनो।", | |
"पहाय न पुनायन्ति, इमं लोकं कुदाचन’’न्ति॥", | |
"‘‘नत्थञ्ञो", | |
"संसरन्ति", | |
"‘‘ये च मोहं पहन्त्वान, तमोखन्धं", | |
"न ते पुन संसरन्ति, हेतु तेसं न विज्जती’’ति॥", | |
"‘‘तण्हादुतियो", | |
"इत्थभावञ्ञथाभावं", | |
"‘‘एतमादीनवं", | |
"वीततण्हो अनादानो, सतो भिक्खु परिब्बजे’’ति॥", | |
"‘‘योनिसो", | |
"नत्थञ्ञो एवं बहुकारो, उत्तमत्थस्स पत्तिया।", | |
"योनिसो पदहं भिक्खु, खयं दुक्खस्स पापुणे’’ति॥", | |
"‘‘कल्याणमित्तो यो भिक्खु, सप्पतिस्सो सगारवो।", | |
"करं मित्तानं वचनं, सम्पजानो पतिस्सतो।", | |
"पापुणे अनुपुब्बेन, सब्बसंयोजनक्खय’’न्ति॥", | |
"‘‘आपायिको", | |
"वग्गारामो अधम्मट्ठो, योगक्खेमा पधंसति", | |
"सङ्घं समग्गं भेत्वान", | |
"‘‘सुखा सङ्घस्स सामग्गी, समग्गानञ्चनुग्गहो।", | |
"समग्गरतो धम्मट्ठो, योगक्खेमा न धंसति।", | |
"सङ्घं समग्गं कत्वान, कप्पं सग्गम्हि मोदती’’ति॥", | |
"‘‘पदुट्ठचित्तं", | |
"एतमत्थञ्च ब्याकासि, बुद्धो भिक्खून सन्तिके॥", | |
"‘‘इमम्हि चायं समये, कालं कयिराथ पुग्गलो।", | |
"निरयं उपपज्जेय्य, चित्तं हिस्स पदूसितं॥", | |
"‘‘यथा हरित्वा निक्खिपेय्य, एवमेव तथाविधो।", | |
"चेतोपदोसहेतु हि, सत्ता गच्छन्ति दुग्गति’’न्ति॥", | |
"मोहो कोधो अथ मक्खो, विज्जा तण्हा सेखदुवे च।", | |
"भेदो सामग्गिपुग्गलो", | |
"‘‘पसन्नचित्तं ञत्वान, एकच्चं इध पुग्गलं।", | |
"एतमत्थञ्च ब्याकासि, बुद्धो भिक्खून सन्तिके॥", | |
"‘‘इमम्हि", | |
"सुगतिं उपपज्जेय्य, चित्तं हिस्स पसादितं॥", | |
"‘‘यथा हरित्वा निक्खिपेय्य, एवमेव तथाविधो।", | |
"चेतोपसादहेतु हि, सत्ता गच्छन्ति सुग्गति’’न्ति॥", | |
"‘‘पुञ्ञमेव सो सिक्खेय्य, आयतग्गं सुखुद्रयं।", | |
"दानञ्च", | |
"‘‘एते", | |
"अब्यापज्झं", | |
"‘‘अप्पमादं", | |
"अप्पमत्तो उभो अत्थे, अधिगण्हाति पण्डितो॥", | |
"‘‘दिट्ठे", | |
"अत्थाभिसमया धीरो, पण्डितोति पवुच्चती’’ति॥", | |
"‘‘एकस्सेकेन कप्पेन, पुग्गलस्सट्ठिसञ्चयो।", | |
"सिया पब्बतसमो रासि, इति वुत्तं महेसिना॥", | |
"‘‘सो खो पनायं अक्खातो, वेपुल्लो पब्बतो महा।", | |
"उत्तरो गिज्झकूटस्स, मगधानं गिरिब्बजे॥", | |
"‘‘यतो", | |
"दुक्खं", | |
"अरियञ्चट्ठङ्गिकं", | |
"‘‘स सत्तक्खत्तुं परमं, सन्धावित्वान पुग्गलो।", | |
"दुक्खस्सन्तकरो होति, सब्बसंयोजनक्खया’’ति॥", | |
"‘‘एकधम्मं अतीतस्स, मुसावादिस्स जन्तुनो।", | |
"वितिण्णपरलोकस्स, नत्थि पापं अकारिय’’न्ति॥", | |
"‘‘एवं चे सत्ता जानेय्युं, यथावुत्तं महेसिना।", | |
"विपाकं संविभागस्स, यथा होति महप्फलं॥", | |
"‘‘विनेय्य", | |
"दज्जुं कालेन अरियेसु, यत्थ दिन्नं महप्फलं॥", | |
"‘‘अन्नञ्च दत्वा", | |
"इतो चुता मनुस्सत्ता, सग्गं गच्छन्ति दायका॥", | |
"‘‘ते", | |
"विपाकं संविभागस्स, अनुभोन्ति अमच्छरा’’ति॥", | |
"‘‘यो", | |
"तनू", | |
"‘‘एकम्पि चे पाणमदुट्ठचित्तो, मेत्तायति कुसलो तेन होति।", | |
"सब्बे च पाणे मनसानुकम्पं, पहूतमरियो पकरोति पुञ्ञं॥", | |
"‘‘ये", | |
"अस्समेधं पुरिसमेधं, सम्मापासं वाजपेय्यं निरग्गळं॥", | |
"‘‘मेत्तस्स चित्तस्स सुभावितस्स, कलम्पि ते नानुभवन्ति सोळसिं।", | |
"चन्दप्पभा", | |
"‘‘यो न हन्ति न घातेति, न जिनाति न जापये।", | |
"मेत्तंसो सब्बभूतेसु, वेरं तस्स न केनची’’ति॥", | |
"चित्तं", | |
"सम्पजानमुसावादो, दानञ्च मेत्तभावना", | |
"सत्तिमानि च", | |
"एकधम्मेसु सुत्तन्ता, सत्तवीसतिसङ्गहाति॥", | |
"‘‘चक्खु सोतञ्च घानञ्च, जिव्हा कायो तथा मनो।", | |
"एतानि यस्स द्वारानि, अगुत्तानिध", | |
"‘‘भोजनम्हि अमत्तञ्ञू, इन्द्रियेसु असंवुतो।", | |
"कायदुक्खं चेतोदुक्खं, दुक्खं सो अधिगच्छति॥", | |
"‘‘डय्हमानेन कायेन, डय्हमानेन चेतसा।", | |
"दिवा वा यदि वा रत्तिं, दुक्खं विहरति तादिसो’’ति॥", | |
"‘‘चक्खु सोतञ्च घानञ्च, जिव्हा कायो तथा", | |
"एतानि यस्स द्वारानि, सुगुत्तानिध भिक्खुनो॥", | |
"‘‘भोजनम्हि च मत्तञ्ञू, इन्द्रियेसु च संवुतो।", | |
"कायसुखं चेतोसुखं, सुखं सो अधिगच्छति॥", | |
"‘‘अडय्हमानेन कायेन, अडय्हमानेन चेतसा।", | |
"दिवा वा यदि वा रत्तिं, सुखं विहरति तादिसो’’ति॥", | |
"‘‘कायदुच्चरितं कत्वा, वचीदुच्चरितानि च।", | |
"मनोदुच्चरितं", | |
"‘‘अकत्वा", | |
"कायस्स भेदा दुप्पञ्ञो, निरयं सोपपज्जती’’ति", | |
"‘‘कायदुच्चरितं हित्वा, वचीदुच्चरितानि च।", | |
"मनोदुच्चरितं हित्वा, यञ्चञ्ञं दोससञ्हितं॥", | |
"‘‘अकत्वाकुसलं कम्मं, कत्वान कुसलं बहुं।", | |
"कायस्स भेदा सप्पञ्ञो, सग्गं सो उपपज्जती’’ति॥", | |
"‘‘पापकेन", | |
"एतेहि द्वीहि धम्मेहि, यो समन्नागतो नरो।", | |
"कायस्स भेदा दुप्पञ्ञो, निरयं सोपपज्जती’’ति॥", | |
"‘‘भद्दकेन च सीलेन, भद्दिकाय च दिट्ठिया।", | |
"एतेहि द्वीहि धम्मेहि, यो समन्नागतो नरो।", | |
"कायस्स भेदा सप्पञ्ञो, सग्गं सो उपपज्जती’’ति॥", | |
"‘‘अनातापी", | |
"यो थीनमिद्धबहुलो, अहिरीको अनादरो।", | |
"अभब्बो तादिसो भिक्खु, फुट्ठुं सम्बोधिमुत्तमं॥", | |
"‘‘यो", | |
"संयोजनं जातिजराय छेत्वा, इधेव सम्बोधिमनुत्तरं फुसे’’ति॥", | |
"‘‘संवरत्थं पहानत्थं, ब्रह्मचरियं अनीतिहं।", | |
"अदेसयि सो भगवा, निब्बानोगधगामिनं॥", | |
"‘‘एस मग्गो महत्तेहि", | |
"ये ये तं पटिपज्जन्ति, यथा बुद्धेन देसितं।", | |
"दुक्खस्सन्तं करिस्सन्ति, सत्थुसासनकारिनो’’ति॥", | |
"‘‘अभिञ्ञत्थं परिञ्ञत्थं, ब्रह्मचरियं अनीतिहं।", | |
"अदेसयि सो भगवा, निब्बानोगधगामिनं॥", | |
"‘‘एस मग्गो महत्तेहि, अनुयातो महेसिभि।", | |
"ये ये तं पटिपज्जन्ति, यथा बुद्धेन देसितं।", | |
"दुक्खस्सन्तं करिस्सन्ति, सत्थुसासनकारिनो’’ति॥", | |
"‘‘संवेजनीयट्ठानेसु", | |
"आतापी", | |
"‘‘एवं विहारी आतापी, सन्तवुत्ति अनुद्धतो।", | |
"चेतोसमथमनुयुत्तो, खयं दुक्खस्स पापुणे’’ति॥", | |
"द्वे च भिक्खू तपनीया, तपनीया परत्थेहि।", | |
"आतापी", | |
"‘‘तथागतं बुद्धमसय्हसाहिनं, दुवे वितक्का समुदाचरन्ति नं।", | |
"खेमो वितक्को पठमो उदीरितो, ततो विवेको दुतियो पकासितो॥", | |
"‘‘तमोनुदं", | |
"विसन्तरं", | |
"मारञ्जहं", | |
"‘‘सेले यथा पब्बतमुद्धनिट्ठितो, यथापि पस्से जनतं समन्ततो।", | |
"तथूपमं धम्ममयं सुमेधो, पासादमारुय्ह", | |
"सोकावतिण्णं जनतमपेतसोको, अवेक्खति जातिजराभिभूत’’न्ति॥", | |
"‘‘तथागतस्स बुद्धस्स, सब्बभूतानुकम्पिनो।", | |
"परियायवचनं पस्स, द्वे च धम्मा पकासिता॥", | |
"‘‘पापकं", | |
"ततो विरत्तचित्तासे, दुक्खस्सन्तं करिस्सथा’’ति॥", | |
"‘‘या काचिमा दुग्गतियो, अस्मिं लोके परम्हि च।", | |
"अविज्जामूलिका सब्बा, इच्छालोभसमुस्सया॥", | |
"‘‘यतो च होति पापिच्छो, अहिरीको अनादरो।", | |
"ततो पापं पसवति, अपायं तेन गच्छति॥", | |
"‘‘तस्मा छन्दञ्च लोभञ्च, अविज्जञ्च विराजयं।", | |
"विज्जं उप्पादयं भिक्खु, सब्बा दुग्गतियो जहे’’ति॥", | |
"‘‘पञ्ञाय परिहानेन, पस्स लोकं सदेवकं।", | |
"निविट्ठं नामरूपस्मिं, इदं सच्चन्ति मञ्ञति॥", | |
"‘‘पञ्ञा हि सेट्ठा लोकस्मिं, यायं निब्बेधगामिनी।", | |
"याय", | |
"‘‘तेसं", | |
"पिहयन्ति", | |
"‘‘येसं", | |
"वोक्कन्ता सुक्कमूला ते, जातिमरणगामिनो॥", | |
"‘‘येसञ्च हिरिओत्तप्पं, सदा सम्मा उपट्ठिता।", | |
"विरूळ्हब्रह्मचरिया", | |
"‘‘जातं भूतं समुप्पन्नं, कतं सङ्खतमद्धुवं।", | |
"जरामरणसङ्घाटं, रोगनीळं", | |
"‘‘आहारनेत्तिप्पभवं, नालं तदभिनन्दितुं।", | |
"तस्स निस्सरणं सन्तं, अतक्कावचरं धुवं॥", | |
"‘‘अजातं असमुप्पन्नं, असोकं विरजं पदं।", | |
"निरोधो", | |
"‘‘दुवे", | |
"एका हि धातु इध दिट्ठधम्मिका, सउपादिसेसा भवनेत्तिसङ्खया।", | |
"अनुपादिसेसा", | |
"‘‘ये एतदञ्ञाय पदं असङ्खतं, विमुत्तचित्ता भवनेत्तिसङ्खया।", | |
"ते धम्मसाराधिगमा खये रता, पहंसु ते सब्बभवानि तादिनो’’ति॥", | |
"‘‘ये सन्तचित्ता निपका, सतिमन्तो च", | |
"सम्मा", | |
"‘‘अप्पमादरता सन्ता, पमादे भयदस्सिनो।", | |
"अभब्बा परिहानाय, निब्बानस्सेव सन्तिके’’ति॥", | |
"‘‘परिपुण्णसिक्खं", | |
"तं वे मुनिं अन्तिमदेहधारिं, मारञ्जहं ब्रूमि जराय पारगुं॥", | |
"‘‘तस्मा सदा झानरता समाहिता, आतापिनो", | |
"मारं ससेनं अभिभुय्य भिक्खवो, भवथ जातिमरणस्स पारगा’’ति॥", | |
"‘‘जागरन्ता सुणाथेतं, ये सुत्ता ते पबुज्झथ।", | |
"सुत्ता जागरितं सेय्यो, नत्थि जागरतो भयं॥", | |
"‘‘यो", | |
"कालेन", | |
"‘‘तस्मा हवे जागरियं भजेथ, आतापी भिक्खु निपको झानलाभी।", | |
"संयोजनं जातिजराय छेत्वा, इधेव सम्बोधिमनुत्तरं फुसे’’ति॥", | |
"‘‘अभूतवादी", | |
"उभोपि", | |
"‘‘कासावकण्ठा बहवो, पापधम्मा असञ्ञता।", | |
"पापा पापेहि कम्मेहि, निरयं ते उपपज्जरे॥", | |
"‘‘सेय्यो अयोगुळो भुत्तो, तत्तो अग्गिसिखूपमो।", | |
"यञ्चे", | |
"‘‘ये", | |
"यथाभूते विमुच्चन्ति, भवतण्हा परिक्खया॥", | |
"‘‘स वे", | |
"भूतस्स", | |
"द्वे इन्द्रिया द्वे तपनीया, सीलेन अपरे दुवे।", | |
"अनोत्तापी कुहना द्वे च, संवेजनीयेन", | |
"वितक्का देसना विज्जा, पञ्ञा धम्मेन पञ्चमं।", | |
"अजातं धातुसल्लानं, सिक्खा जागरियेन च।", | |
"अपायदिट्ठिया चेव", | |
"‘‘लोभो दोसो च मोहो च, पुरिसं पापचेतसं।", | |
"हिंसन्ति अत्तसम्भूता, तचसारंव सम्फल’’न्ति॥", | |
"‘‘रूपधातुं", | |
"निरोधे", | |
"‘‘कायेन", | |
"उपधिप्पटिनिस्सग्गं, सच्छिकत्वा अनासवो।", | |
"देसेति सम्मासम्बुद्धो, असोकं विरजं पद’’न्ति॥", | |
"‘‘समाहितो सम्पजानो, सतो बुद्धस्स सावको।", | |
"वेदना च पजानाति, वेदनानञ्च सम्भवं॥", | |
"‘‘यत्थ चेता निरुज्झन्ति, मग्गञ्च खयगामिनं।", | |
"वेदनानं खया भिक्खु, निच्छातो परिनिब्बुतो’’ति॥", | |
"‘‘यो सुखं दुक्खतो अद्द", | |
"अदुक्खमसुखं सन्तं, अदक्खि नं अनिच्चतो॥", | |
"‘‘स वे सम्मद्दसो भिक्खु, यतो तत्थ विमुच्चति।", | |
"अभिञ्ञावोसितो सन्तो, स वे योगातिगो मुनी’’ति॥", | |
"‘‘समाहितो सम्पजानो, सतो बुद्धस्स सावको।", | |
"एसना", | |
"‘‘यत्थ चेता निरुज्झन्ति, मग्गञ्च खयगामिनं।", | |
"एसनानं खया भिक्खु, निच्छातो परिनिब्बुतो’’ति॥", | |
"‘‘कामेसना भवेसना, ब्रह्मचरियेसना सह।", | |
"इति सच्चपरामासो, दिट्ठिट्ठाना समुस्सया॥", | |
"‘‘सब्बरागविरत्तस्स, तण्हक्खयविमुत्तिनो।", | |
"एसना", | |
"एसनानं खया भिक्खु, निरासो अकथंकथी’’ति॥", | |
"‘‘समाहितो", | |
"आसवे च पजानाति, आसवानञ्च सम्भवं॥", | |
"‘‘यत्थ", | |
"आसवानं खया भिक्खु, निच्छातो परिनिब्बुतो’’ति॥", | |
"‘‘यस्स", | |
"भवासवो परिक्खीणो, विप्पमुत्तो निरूपधि।", | |
"धारेति अन्तिमं देहं, जेत्वा मारं सवाहिनि’’न्ति", | |
"‘‘तण्हायोगेन संयुत्ता, रत्तचित्ता भवाभवे।", | |
"ते योगयुत्ता मारस्स, अयोगक्खेमिनो जना।", | |
"सत्ता गच्छन्ति संसारं, जातीमरणगामिनो॥", | |
"‘‘ये च तण्हं पहन्त्वान, वीततण्हा", | |
"ते वे", | |
"‘‘सीलं", | |
"अतिक्कम्म मारधेय्यं, आदिच्चोव विरोचती’’ति॥", | |
"मूलधातु अथ वेदना दुवे, एसना च दुवे आसवा दुवे।", | |
"तण्हातो च अथ", | |
"‘‘पुञ्ञमेव", | |
"दानञ्च समचरियञ्च, मेत्तचित्तञ्च भावये॥", | |
"‘‘एते धम्मे भावयित्वा, तयो सुखसमुद्दये।", | |
"अब्यापज्झं सुखं लोकं, पण्डितो उपपज्जती’’ति॥", | |
"‘‘मंसचक्खु दिब्बचक्खु, पञ्ञाचक्खु अनुत्तरं।", | |
"एतानि तीणि चक्खूनि, अक्खासि पुरिसुत्तमो॥", | |
"‘‘मंसचक्खुस्स उप्पादो, मग्गो दिब्बस्स चक्खुनो।", | |
"यतो ञाणं उदपादि, पञ्ञाचक्खु अनुत्तरं।", | |
"यस्स", | |
"‘‘सेखस्स सिक्खमानस्स, उजुमग्गानुसारिनो।", | |
"खयस्मिं पठमं ञाणं, ततो अञ्ञा अनन्तरा॥", | |
"‘‘ततो", | |
"अकुप्पा मे विमुत्तीति, भवसंयोजनक्खया॥", | |
"‘‘स", | |
"धारेति अन्तिमं देहं, जेत्वा मारं सवाहिनि’’न्ति॥", | |
"‘‘अक्खेय्यसञ्ञिनो सत्ता, अक्खेय्यस्मिं पतिट्ठिता।", | |
"अक्खेय्यं", | |
"‘‘अक्खेय्यञ्च", | |
"फुट्ठो विमोक्खो मनसा, सन्तिपदमनुत्तरं॥", | |
"‘‘स वे", | |
"सङ्खायसेवी धम्मट्ठो, सङ्ख्यं नोपेति वेदगू’’ति॥", | |
"‘‘कायदुच्चरितं", | |
"मनोदुच्चरितं कत्वा, यञ्चञ्ञं दोससंहितं॥", | |
"‘‘अकत्वा", | |
"कायस्स भेदा दुप्पञ्ञो, निरयं सोपपज्जती’’ति॥", | |
"‘‘कायदुच्चरितं हित्वा, वचीदुच्चरितानि च।", | |
"मनोदुच्चरितं हित्वा, यञ्चञ्ञं दोससंहितं॥", | |
"‘‘अकत्वाकुसलं", | |
"कायस्स भेदा सप्पञ्ञो, सग्गं सो उपपज्जती’’ति॥", | |
"‘‘कायसुचिं", | |
"सुचिं", | |
"‘‘कायमुनिं वचीमुनिं, मनोमुनिमनासवं।", | |
"मुनिं मोनेय्यसम्पन्नं, आहु निन्हातपापक’’न्ति", | |
"‘‘यस्स", | |
"तं भावितत्तञ्ञतरं, ब्रह्मभूतं तथागतं।", | |
"बुद्धं वेरभयातीतं, आहु सब्बप्पहायिन’’न्ति॥", | |
"‘‘यस्स रागो च दोसो च, अविज्जा च विराजिता।", | |
"सोमं समुद्दं सगहं सरक्खसं, सऊमिभयं दुत्तरं अच्चतारि॥", | |
"‘‘सङ्गातिगो", | |
"अत्थङ्गतो सो न पमाणमेति, अमोहयि मच्चुराजन्ति ब्रूमी’’ति॥", | |
"पुञ्ञं चक्खु अथ इन्द्रियानि", | |
"मुनो", | |
"‘‘मिच्छा मनं पणिधाय, मिच्छा वाचञ्च भासिय", | |
"मिच्छा कम्मानि कत्वान, कायेन इध पुग्गलो॥", | |
"‘‘अप्पस्सुतापुञ्ञकरो", | |
"कायस्स भेदा दुप्पञ्ञो, निरयं सोपपज्जती’’ति॥", | |
"‘‘सम्मा मनं पणिधाय, सम्मा वाचञ्च भासिय", | |
"सम्मा कम्मानि कत्वान, कायेन इध पुग्गलो॥", | |
"‘‘बहुस्सुतो पुञ्ञकरो, अप्पस्मिं इध जीविते।", | |
"कायस्स भेदा सप्पञ्ञो, सग्गं सो उपपज्जती’’ति॥", | |
"‘‘कामनिस्सरणं ञत्वा, रूपानञ्च अतिक्कमं।", | |
"सब्बसङ्खारसमथं, फुसं आतापि सब्बदा॥", | |
"‘‘स वे सम्मद्दसो भिक्खु, यतो तत्थ विमुच्चति।", | |
"अभिञ्ञावोसितो सन्तो, स वे योगातिगो मुनी’’ति॥", | |
"‘‘ये च रूपूपगा सत्ता, ये च अरूपट्ठायिनो", | |
"निरोधं अप्पजानन्ता, आगन्तारो पुनब्भवं॥", | |
"‘‘ये च रूपे परिञ्ञाय, अरूपेसु असण्ठिता।", | |
"निरोधे ये विमुच्चन्ति, ते जना मच्चुहायिनो॥", | |
"‘‘कायेन अमतं धातुं, फुसयित्वा निरूपधिं।", | |
"उपधिप्पटिनिस्सग्गं, सच्छिकत्वा अनासवो।", | |
"देसेति सम्मासम्बुद्धो, असोकं विरजं पद’’न्ति॥", | |
"‘‘अतिजातं अनुजातं, पुत्तमिच्छन्ति पण्डिता।", | |
"अवजातं न इच्छन्ति, यो होति कुलगन्धनो॥", | |
"‘‘एते खो पुत्ता लोकस्मिं, ये भवन्ति उपासका।", | |
"सद्धा सीलेन सम्पन्ना, वदञ्ञू वीतमच्छरा।", | |
"चन्दो अब्भघना मुत्तो, परिसासु विरोचरे’’ति॥", | |
"‘‘न समणे न ब्राह्मणे, न कपणद्धिकवनिब्बके।", | |
"लद्धान संविभाजेति, अन्नं", | |
"तं वे अवुट्ठिकसमोति, आहु नं पुरिसाधमं॥", | |
"‘‘एकच्चानं", | |
"तं वे पदेसवस्सीति, आहु मेधाविनो जना॥", | |
"‘‘सुभिक्खवाचो पुरिसो, सब्बभूतानुकम्पको।", | |
"आमोदमानो पकिरेति, देथ देथाति भासति॥", | |
"‘‘यथापि मेघो थनयित्वा, गज्जयित्वा पवस्सति।", | |
"थलं निन्नञ्च पूरेति, अभिसन्दन्तोव", | |
"‘‘एवमेव", | |
"धम्मेन संहरित्वान, उट्ठानाधिगतं धनं।", | |
"तप्पेति", | |
"‘‘सीलं", | |
"पसंसं वित्तलाभञ्च, पेच्च सग्गे पमोदनं॥", | |
"‘‘अकरोन्तोपि", | |
"सङ्कियो होति पापस्मिं, अवण्णो चस्स रूहति॥", | |
"‘‘यादिसं कुरुते मित्तं, यादिसं चूपसेवति।", | |
"स", | |
"‘‘सेवमानो सेवमानं, सम्फुट्ठो सम्फुसं परं।", | |
"सरो दिद्धो कलापंव, अलित्तमुपलिम्पति।", | |
"उपलेपभया", | |
"‘‘पूतिमच्छं कुसग्गेन, यो नरो उपनय्हति।", | |
"कुसापि पूति वायन्ति, एवं बालूपसेवना॥", | |
"‘‘तगरञ्च पलासेन, यो नरो उपनय्हति।", | |
"पत्तापि सुरभि वायन्ति, एवं धीरूपसेवना॥", | |
"‘‘तस्मा", | |
"असन्ते नुपसेवेय्य, सन्ते", | |
"असन्तो निरयं नेन्ति, सन्तो पापेन्ति सुग्गति’’न्ति॥", | |
"‘‘कायञ्च", | |
"उपधीसु", | |
"सम्पत्वा परमं सन्तिं, कालं कङ्खति भावितत्तो’’ति॥", | |
"‘‘संसग्गा वनथो जातो, असंसग्गेन छिज्जति।", | |
"परित्तं", | |
"‘‘एवं", | |
"तस्मा तं परिवज्जेय्य, कुसीतं हीनवीरियं॥", | |
"‘‘पविवित्तेहि अरियेहि, पहितत्तेहि झायिभि।", | |
"निच्चं आरद्धवीरियेहि, पण्डितेहि सहावसे’’ति॥", | |
"‘‘कम्मारामो भस्सारामो", | |
"अभब्बो", | |
"‘‘तस्मा हि अप्पकिच्चस्स, अप्पमिद्धो अनुद्धतो।", | |
"भब्बो सो तादिसो भिक्खु, फुट्ठुं सम्बोधिमुत्तम’’न्ति॥", | |
"द्वे दिट्ठी निस्सरणं रूपं, पुत्तो अवुट्ठिकेन च।", | |
"सुखा च भिदुरो", | |
"‘‘अनवञ्ञत्तिसंयुत्तो, लाभसक्कारगारवो।", | |
"सहनन्दी अमच्चेहि, आरा संयोजनक्खया॥", | |
"‘‘यो च पुत्तपसुं हित्वा, विवाहे संहरानि", | |
"भब्बो सो तादिसो भिक्खु, फुट्ठुं सम्बोधिमुत्तम’’न्ति॥", | |
"‘‘यस्स सक्करियमानस्स, असक्कारेन चूभयं।", | |
"समाधि न विकम्पति, अप्पमादविहारिनो", | |
"‘‘तं", | |
"उपादानक्खयारामं, आहु सप्पुरिसो इती’’ति॥", | |
"‘‘दिस्वा", | |
"देवतापि नमस्सन्ति, महन्तं वीतसारदं॥", | |
"‘‘नमो", | |
"जेत्वान मच्चुनो सेनं, विमोक्खेन अनावरं॥", | |
"‘‘इति हेतं नमस्सन्ति, देवता पत्तमानसं।", | |
"तञ्हि तस्स न पस्सन्ति, येन मच्चुवसं वजे’’ति॥", | |
"‘‘यदा देवो देवकाया, चवति आयुसङ्खया।", | |
"तयो सद्दा निच्छरन्ति, देवानं अनुमोदतं॥", | |
"‘‘‘इतो", | |
"मनुस्सभूतो सद्धम्मे, लभ सद्धं अनुत्तरं॥", | |
"‘‘‘सा ते सद्धा निविट्ठस्स, मूलजाता पतिट्ठिता।", | |
"यावजीवं", | |
"‘‘‘कायदुच्चरितं", | |
"मनोदुच्चरितं हित्वा, यञ्चञ्ञं दोससञ्हितं॥", | |
"‘‘‘कायेन कुसलं कत्वा, वाचाय कुसलं बहुं।", | |
"मनसा कुसलं कत्वा, अप्पमाणं निरूपधिं॥", | |
"‘‘‘ततो ओपधिकं पुञ्ञं, कत्वा दानेन तं बहुं।", | |
"अञ्ञेपि मच्चे सद्धम्मे, ब्रह्मचरिये निवेसय’", | |
"‘‘इमाय अनुकम्पाय, देवा देवं यदा विदू।", | |
"चवन्तं", | |
"‘‘सत्था हि लोके पठमो महेसि, तस्सन्वयो सावको भावितत्तो।", | |
"अथापरो", | |
"‘‘एते तयो देवमनुस्ससेट्ठा, पभङ्करा धम्ममुदीरयन्ता।", | |
"अपापुरन्ति", | |
"‘‘ये सत्थवाहेन अनुत्तरेन, सुदेसितं मग्गमनुक्कमन्ति", | |
"इधेव दुक्खस्स करोन्ति अन्तं, ये अप्पमत्ता सुगतस्स सासने’’ति॥", | |
"‘‘असुभानुपस्सी कायस्मिं, आनापाने पटिस्सतो।", | |
"सब्बसङ्खारसमथं, पस्सं आतापि सब्बदा॥", | |
"‘‘स वे सम्मद्दसो भिक्खु, यतो तत्थ विमुच्चति।", | |
"अभिञ्ञावोसितो सन्तो, स वे योगातिगो मुनी’’ति॥", | |
"‘‘धम्मारामो", | |
"धम्मं अनुस्सरं भिक्खु, सद्धम्मा न परिहायति॥", | |
"‘‘चरं वा यदि वा तिट्ठं, निसिन्नो उद वा सयं।", | |
"अज्झत्तं समयं चित्तं, सन्तिमेवाधिगच्छती’’ति॥", | |
"‘‘तयो वितक्के कुसले वितक्कये, तयो", | |
"स वे वितक्कानि विचारितानि, समेति वुट्ठीव रजं समूहतं।", | |
"स वे वितक्कूपसमेन चेतसा, इधेव सो सन्तिपदं समज्झगा’’ति॥", | |
"‘‘अनत्थजननो लोभो, लोभो चित्तप्पकोपनो।", | |
"भयमन्तरतो जातं, तं जनो नावबुज्झति॥", | |
"‘‘लुद्धो", | |
"अन्धतमं", | |
"‘‘यो च लोभं पहन्त्वान, लोभनेय्ये न लुब्भति।", | |
"लोभो पहीयते तम्हा, उदबिन्दूव पोक्खरा॥", | |
"‘‘अनत्थजननो", | |
"भयमन्तरतो जातं, तं जनो नावबुज्झति॥", | |
"‘‘दुट्ठो अत्थं न जानाति, दुट्ठो धम्मं न पस्सति।", | |
"अन्धतमं तदा होति, यं दोसो सहते नरं॥", | |
"‘‘यो च दोसं पहन्त्वान, दोसनेय्ये न दुस्सति।", | |
"दोसो पहीयते तम्हा, तालपक्कंव बन्धना॥", | |
"‘‘अनत्थजननो मोहो, मोहो चित्तप्पकोपनो।", | |
"भयमन्तरतो जातं, तं जनो नावबुज्झति॥", | |
"‘‘मूळ्हो अत्थं न जानाति, मूळ्हो धम्मं न पस्सति।", | |
"अन्धतमं तदा होति, यं मोहो सहते नरं॥", | |
"‘‘यो", | |
"मोहं विहन्ति सो सब्बं, आदिच्चोवुदयं तम’’न्ति॥", | |
"‘‘मा जातु कोचि लोकस्मिं, पापिच्छो उदपज्जथ।", | |
"तदमिनापि जानाथ, पापिच्छानं यथा गति॥", | |
"‘‘पण्डितोति", | |
"जलंव यससा अट्ठा, देवदत्तोति विस्सुतो", | |
"‘‘सो पमाणमनुचिण्णो", | |
"अवीचिनिरयं पत्तो, चतुद्वारं भयानकं॥", | |
"‘‘अदुट्ठस्स हि यो दुब्भे, पापकम्मं अकुब्बतो।", | |
"तमेव पापं फुसति", | |
"‘‘समुद्दं विसकुम्भेन, यो मञ्ञेय्य पदूसितुं।", | |
"न सो तेन पदूसेय्य, भेस्मा हि उदधि महा॥", | |
"‘‘एवमेव", | |
"सम्मग्गतं", | |
"‘‘तादिसं मित्तं कुब्बेथ, तञ्च सेवेय्य पण्डितो।", | |
"यस्स मग्गानुगो भिक्खु, खयं दुक्खस्स पापुणे’’ति॥", | |
"वितक्कासक्कारसद्द, चवनलोके असुभं।", | |
"धम्मअन्धकारमलं, देवदत्तेन ते दसाति॥", | |
"‘‘अग्गतो वे पसन्नानं, अग्गं धम्मं विजानतं।", | |
"अग्गे बुद्धे पसन्नानं, दक्खिणेय्ये अनुत्तरे॥", | |
"‘‘अग्गे धम्मे पसन्नानं, विरागूपसमे सुखे।", | |
"अग्गे सङ्घे पसन्नानं, पुञ्ञक्खेत्ते अनुत्तरे॥", | |
"‘‘अग्गस्मिं", | |
"अग्गं आयु च वण्णो च, यसो कित्ति सुखं बलं॥", | |
"‘‘अग्गस्स दाता मेधावी, अग्गधम्मसमाहितो।", | |
"देवभूतो मनुस्सो वा, अग्गप्पत्तो पमोदती’’ति॥", | |
"‘‘गिहिभोगा परिहीनो, सामञ्ञत्थञ्च दुब्भगो।", | |
"परिधंसमानो पकिरेति, छवालातंव नस्सति॥", | |
"‘‘कासावकण्ठा बहवो, पापधम्मा असञ्ञता।", | |
"पापा पापेहि कम्मेहि, निरयं ते उपपज्जरे॥", | |
"‘‘सेय्यो अयोगुळो भुत्तो, तत्तो अग्गिसिखूपमो।", | |
"यञ्चे भुञ्जेय्य दुस्सीलो, रट्ठपिण्डमसञ्ञतो’’ति॥", | |
"‘‘अनुबन्धोपि", | |
"एजानुगो अनेजस्स, निब्बुतस्स अनिब्बुतो।", | |
"गिद्धो सो वीतगेधस्स, पस्स यावञ्च आरका॥", | |
"‘‘यो", | |
"रहदोव", | |
"‘‘अनेजो सो अनेजस्स, निब्बुतस्स च निब्बुतो।", | |
"अगिद्धो वीतगेधस्स, पस्स यावञ्च सन्तिके’’ति॥", | |
"‘‘रागग्गि दहति मच्चे, रत्ते कामेसु मुच्छिते।", | |
"दोसग्गि पन ब्यापन्ने, नरे पाणातिपातिनो॥", | |
"‘‘मोहग्गि पन सम्मूळ्हे, अरियधम्मे अकोविदे।", | |
"एते अग्गी अजानन्ता, सक्कायाभिरता पजा॥", | |
"‘‘ते वड्ढयन्ति निरयं, तिरच्छानञ्च योनियो।", | |
"असुरं", | |
"‘‘ये च रत्तिन्दिवा युत्ता, सम्मासम्बुद्धसासने।", | |
"ते निब्बापेन्ति रागग्गिं, निच्चं असुभसञ्ञिनो॥", | |
"‘‘दोसग्गिं", | |
"मोहग्गिं पन पञ्ञाय, यायं निब्बेधगामिनी॥", | |
"‘‘ते निब्बापेत्वा निपका, रत्तिन्दिवमतन्दिता।", | |
"असेसं परिनिब्बन्ति, असेसं दुक्खमच्चगुं॥", | |
"‘‘अरियद्दसा वेदगुनो, सम्मदञ्ञाय पण्डिता।", | |
"जातिक्खयमभिञ्ञाय, नागच्छन्ति पुनब्भव’’न्ति॥", | |
"‘‘सत्तसङ्गप्पहीनस्स, नेत्तिच्छिन्नस्स भिक्खुनो।", | |
"विक्खीणो जातिसंसारो, नत्थि तस्स पुनब्भवो’’ति॥", | |
"‘‘पच्चुपट्ठितकामा च, ये देवा वसवत्तिनो।", | |
"निम्मानरतिनो देवा, ये चञ्ञे कामभोगिनो।", | |
"इत्थभावञ्ञथाभावं", | |
"‘‘एतमादीनवं ञत्वा, कामभोगेसु पण्डितो।", | |
"सब्बे परिच्चजे कामे, ये दिब्बा ये च मानुसा॥", | |
"‘‘पियरूपसातगधितं", | |
"असेसं परिनिब्बन्ति, असेसं दुक्खमच्चगुं॥", | |
"‘‘अरियद्दसा वेदगुनो, सम्मदञ्ञाय पण्डिता।", | |
"जातिक्खयमभिञ्ञाय, नागच्छन्ति पुनब्भव’’न्ति॥", | |
"‘‘कामयोगेन संयुत्ता, भवयोगेन चूभयं।", | |
"सत्ता", | |
"‘‘ये च कामे पहन्त्वान, अप्पत्ता आसवक्खयं।", | |
"भवयोगेन संयुत्ता, अनागामीति वुच्चरे॥", | |
"‘‘ये", | |
"ते वे पारङ्गता लोके, ये पत्ता आसवक्खय’’न्ति॥", | |
"‘‘यस्स", | |
"तं वे कल्याणसीलोति, आहु भिक्खुं हिरीमनं", | |
"‘‘यस्स धम्मा सुभाविता, सत्त", | |
"तं वे कल्याणधम्मोति, आहु भिक्खुं अनुस्सदं॥", | |
"‘‘यो दुक्खस्स पजानाति, इधेव खयमत्तनो।", | |
"तं वे कल्याणपञ्ञोति, आहु भिक्खुं अनासवं॥", | |
"‘‘तेहि धम्मेहि सम्पन्नं, अनीघं छिन्नसंसयं।", | |
"असितं", | |
"‘‘यमाहु दानं परमं अनुत्तरं, यं संविभागं भगवा अवण्णयि", | |
"अग्गम्हि खेत्तम्हि पसन्नचित्तो, विञ्ञू पजानं को न यजेथ काले॥", | |
"‘‘ये", | |
"तेसं सो अत्थो परमो विसुज्झति, ये अप्पमत्ता सुगतस्स सासने’’ति॥", | |
"‘‘पुब्बेनिवासं योवेदि", | |
"अथो", | |
"‘‘एताहि", | |
"तमहं वदामि तेविज्जं, नाञ्ञं लपितलापन’’न्ति॥", | |
"पसाद जीवित सङ्घाटि", | |
"उपपत्ति", | |
"‘‘यो", | |
"तं तादिसं देवमनुस्ससेट्ठं, सत्ता नमस्सन्ति भवस्स पारगु’’न्ति॥", | |
"‘‘अनवज्जेन तुट्ठस्स, अप्पेन सुलभेन च।", | |
"न सेनासनमारब्भ, चीवरं पानभोजनं।", | |
"विघातो होति चित्तस्स, दिसा नप्पटिहञ्ञति॥", | |
"‘‘ये चस्स", | |
"अधिग्गहिता तुट्ठस्स, अप्पमत्तस्स भिक्खुनो’’ति", | |
"‘‘सेखस्स सिक्खमानस्स, उजुमग्गानुसारिनो।", | |
"खयस्मिं पठमं ञाणं, ततो अञ्ञा अनन्तरा॥", | |
"‘‘ततो", | |
"उप्पज्जति खये ञाणं, खीणा संयोजना इति॥", | |
"‘‘न त्वेविदं कुसीतेन, बालेनमविजानता।", | |
"निब्बानं अधिगन्तब्बं, सब्बगन्थप्पमोचन’’न्ति॥", | |
"‘‘ये", | |
"यत्थ च सब्बसो दुक्खं, असेसं उपरुज्झति।", | |
"तञ्च मग्गं न जानन्ति, दुक्खूपसमगामिनं॥", | |
"‘‘चेतोविमुत्तिहीना ते, अथो पञ्ञाविमुत्तिया।", | |
"अभब्बा ते अन्तकिरियाय, ते वे जातिजरूपगा॥", | |
"‘‘ये", | |
"यत्थ च सब्बसो दुक्खं, असेसं उपरुज्झति।", | |
"तञ्च मग्गं पजानन्ति, दुक्खूपसमगामिनं॥", | |
"‘‘चेतोविमुत्तिसम्पन्ना, अथो पञ्ञाविमुत्तिया।", | |
"भब्बा ते अन्तकिरियाय, न ते जातिजरूपगा’’ति॥", | |
"‘‘पामोज्जकरणं", | |
"यदिदं भावितत्तानं, अरियानं धम्मजीविनं॥", | |
"‘‘ते जोतयन्ति सद्धम्मं, भासयन्ति पभङ्करा।", | |
"आलोककरणा", | |
"‘‘येसं वे सासनं सुत्वा, सम्मदञ्ञाय पण्डिता।", | |
"जातिक्खयमभिञ्ञाय", | |
"‘‘तण्हादुतियो पुरिसो, दीघमद्धान संसरं।", | |
"इत्थभावञ्ञथाभावं, संसारं नातिवत्तति॥", | |
"‘‘एतमादीनवं", | |
"वीततण्हो अनादानो, सतो भिक्खु परिब्बजे’’ति॥", | |
"‘‘ब्रह्माति मातापितरो, पुब्बाचरियाति वुच्चरे।", | |
"आहुनेय्या च पुत्तानं, पजाय अनुकम्पका॥", | |
"‘‘तस्मा हि ने नमस्सेय्य, सक्करेय्य च पण्डितो।", | |
"अन्नेन", | |
"उच्छादनेन न्हापनेन", | |
"‘‘ताय नं पारिचरियाय, मातापितूसु पण्डिता।", | |
"इधेव नं पसंसन्ति, पेच्च सग्गे पमोदती’’ति॥", | |
"‘‘सागारा", | |
"आराधयन्ति सद्धम्मं, योगक्खेमं अनुत्तरं॥", | |
"‘‘सागारेसु", | |
"अनगारा पटिच्छन्ति, परिस्सयविनोदनं॥", | |
"‘‘सुगतं", | |
"सद्दहाना अरहतं, अरियपञ्ञाय झायिनो॥", | |
"‘‘इध धम्मं चरित्वान, मग्गं सुगतिगामिनं।", | |
"नन्दिनो देवलोकस्मिं, मोदन्ति कामकामिनो’’ति॥", | |
"‘‘कुहा थद्धा लपा सिङ्गी, उन्नळा असमाहिता।", | |
"न ते धम्मे विरूहन्ति, सम्मासम्बुद्धदेसिते॥", | |
"‘‘निक्कुहा निल्लपा धीरा, अत्थद्धा सुसमाहिता।", | |
"ते वे धम्मे विरूहन्ति, सम्मासम्बुद्धदेसिते’’ति॥", | |
"‘‘‘हेट्ठा", | |
"‘‘‘ऊमिभय’न्ति खो", | |
"‘‘‘आवट्ट’न्ति खो", | |
"‘‘‘गहरक्खसो’ति खो", | |
"‘‘‘पटिसोतो’ति", | |
"‘‘‘हत्थेहि च पादेहि च वायामो’ति खो, भिक्खवे, वीरियारम्भस्सेतं अधिवचनं।", | |
"‘‘सहापि", | |
"सम्मप्पजानो", | |
"स वेदगू वूसितब्रह्मचरियो, लोकन्तगू पारगतोति वुच्चती’’ति॥", | |
"‘‘चरं", | |
"यो वितक्कं वितक्केति, पापकं गेहनिस्सितं॥", | |
"‘‘कुम्मग्गं पटिपन्नो", | |
"अभब्बो तादिसो भिक्खु, फुट्ठुं सम्बोधिमुत्तमं॥", | |
"‘‘यो", | |
"वितक्कं समयित्वान, वितक्कूपसमे", | |
"भब्बो सो तादिसो भिक्खु, फुट्ठुं सम्बोधिमुत्तम’’न्ति॥", | |
"‘‘यतं", | |
"यतं समिञ्जये", | |
"‘‘उद्धं तिरियं अपाचीनं, यावता जगतो गति।", | |
"समवेक्खिता च धम्मानं, खन्धानं उदयब्बयं॥", | |
"‘‘एवं", | |
"चेतोसमथसामीचिं, सिक्खमानं सदा सतं।", | |
"सततं पहितत्तोति, आहु भिक्खुं तथाविध’’न्ति॥", | |
"‘‘सब्बलोकं", | |
"सब्बलोकविसंयुत्तो, सब्बलोके अनूपयो", | |
"‘‘स वे", | |
"फुट्ठास्स परमा सन्ति, निब्बानं अकुतोभयं॥", | |
"‘‘एस", | |
"सब्बकम्मक्खयं पत्तो, विमुत्तो उपधिसङ्खये॥", | |
"‘‘एस", | |
"सदेवकस्स लोकस्स, ब्रह्मचक्कं पवत्तयि॥", | |
"‘‘इति देवा मनुस्सा च, ये बुद्धं सरणं गता।", | |
"सङ्गम्म तं नमस्सन्ति, महन्तं वीतसारदं॥", | |
"‘‘दन्तो दमयतं सेट्ठो, सन्तो समयतं इसि।", | |
"मुत्तो मोचयतं अग्गो, तिण्णो तारयतं वरो॥", | |
"‘‘इति हेतं नमस्सन्ति, महन्तं वीतसारदं।", | |
"सदेवकस्मिं", | |
"ब्राह्मणसुलभा", | |
"बहुकारा कुहपुरिसा", | |
"सत्तविसेकनिपातं, दुक्कं बावीससुत्तसङ्गहितं।", | |
"समपञ्ञासमथतिकं, तेरस चतुक्कञ्च इति यमिदं॥", | |
"द्विदसुत्तरसुत्तसते, सङ्गायित्वा समादहिंसु पुरा।", | |
"अरहन्तो चिरट्ठितिया, तमाहु नामेन इतिवुत्तन्ति॥" | |
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